कोशिशों के दायरे और सपनो के सीमाएँ, 
दूर कहीं उड़ती हुई पतंगो की यह अदाएँ, 
मैने रंग देखे हैं पतंगो के, 
मैं रहा हूँ संग पतंगो के, 
उड़ता था मैं रोज़ उनके साथ, 
काटता था कभी और कटता भी, 
दूर कहीं जाकर गिरता था, 
और फिर हर शाम धीर धीरे, 
घर वापस आ जाता था, 
सूरज को ये भी कहता, 
की कल वापस जल्दी आ जाना, 
मैने पैसे लिए हैं मा से, 
कल भी तो पतंग उड़ाना है, 
सपनो में रोज़ उड़ जाना है, 
मेरा मॅन और मेरे किस्से, 
थोड़े सच्चे थोड़े मीठे, 
सॉफ नीले आसमान मैं, 
मेरी पतंगो जैसे उड़ते, 
उड़ना हक है जैसे इनका, 
बातें करना मुझसे हँसके....