बेमतलब सी बात का हिसाब हो रहा है,
जानते हुए भी कोई क्यों कुछ खो रहा है,
हाथ बड़ाने की वो अधूरी सी कोशिश,
रेत पर बने सपनो के ये निशान,
मुठ्ठी मैं कस के पकड़े रेत के कुछ ख्वाब,
ओस की बूँदो में नहा कर निकले हैं..
Friday, March 20, 2009
Thursday, March 12, 2009
पैबंद
बड़ी देर तक हम उनसे नज़रें मिलाते रहे,
क़ि वो अफ़साना कुछ तो बयां हो,
निगाहे उनकी कुछ कहती भी थी शायद,
पर हम ही कुछ यू समझे,
यूँ ही होता तो ये अजब सी कशिश
अधूरी सी बातें शायद ख़त्म ना होती,
मेरा ये अधूरापन सवालों के जवाब देता
मैं फिर बेवजह मुस्कुरा कर कहता
कि मैं आज फिर खुश हूँ,
खुश ही हूँ शायद अपने इस पन पर
अपनी आरज़ू के इस बेरंग से पैबंद पर,
समेटकर आँखों में मेरी यह सारी डोर,
मुड़ जाती हैं आज भी कुछ इच्छाएँ बेवजह मेरी और....
क़ि वो अफ़साना कुछ तो बयां हो,
निगाहे उनकी कुछ कहती भी थी शायद,
पर हम ही कुछ यू समझे,
यूँ ही होता तो ये अजब सी कशिश
अधूरी सी बातें शायद ख़त्म ना होती,
मेरा ये अधूरापन सवालों के जवाब देता
मैं फिर बेवजह मुस्कुरा कर कहता
कि मैं आज फिर खुश हूँ,
खुश ही हूँ शायद अपने इस पन पर
अपनी आरज़ू के इस बेरंग से पैबंद पर,
समेटकर आँखों में मेरी यह सारी डोर,
मुड़ जाती हैं आज भी कुछ इच्छाएँ बेवजह मेरी और....
Wednesday, March 11, 2009
भेस
अनछुआ मैं बहुत साल से,
छुपा हुआ था अब तक,
छोड़कर अपना अस्तित्व,
बदल रहा हूं भेस अब,
चाहत जो थी एक दिन,
अब उसी का नाम प्यार है,
प्यार बदला इच्छा में,
इच्छा अब ज़रूरत है,
चाहत में तुम कहीं नहीं थी,
प्यार तुम बिन प्यार ना होता,
इच्छा थोड़ी स्वार्थी है,
ज़रूरत पर तुमसे परे है,
चाहत में तुम अनजान थी,
प्यार में तुम सहमी सी,
इच्छाओं में तुम चाहती मुझे,
ज़रूरत में तुम्हे प्यार चाहिए,
दोषी कौन है इस व्यथा में,
असमंजस या अनजान अपेक्षाएँ,
या असमय मिलन समय का,
व्यर्थ है अब सोचना भी,
ना रह पाओ अगर अनछुए,
छोड़ अस्तित्व कहाँ जाओगे,
ज़रूरतों को प्यार बना लो,
समय को तुम फिर से चला लो......
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