Friday, March 20, 2009

ख्वाब

बेमतलब सी बात का हिसाब हो रहा है,
जानते हुए भी कोई क्यों कुछ खो रहा है,
हाथ बड़ाने की वो अधूरी सी कोशिश,
रेत पर बने सपनो के ये निशान,
मुठ्ठी मैं कस के पकड़े रेत के कुछ ख्वाब,
ओस की बूँदो में नहा कर निकले हैं..

1 comment:

Mamta said...

amazing... enjoyed reading it..