वक़्त के सिरहाने पे करवट बदल रहे थे हम,
पाँव अभी मिट्टी में ही थे,
तन थोड़ा सा गीला,
मॅन जैसे बंद हो गया है
इच्छाओं के इस भुलावे में,
आँखों के इस बहकावे में,
कहीं खो गया है, चित्तियों के इस ढेर में,
भूल कर मत जाना तुम अपना मॅन मेरे पास,
मैं बहुत दूर जाओंगा आज सपने में,
डोरी पकड़ कर पतंग की तुम भी उड़ना मेरे साथ,
आज फिर कट कर लहराएँगे हम, गीरेंगे दूर कहीं जाकर,
संभल कर सोना मेरे पास,
वक़्त के इस तकिये पर करवट बदल रहे हैं हम...
1 comment:
bahut hi umdaa....
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