पानी में अपनी परछाई देख,
मैं घबरा गया,
सोचा एक ही बहुत था,
एक और कहाँ से आ गया,
हवा के धक्के से ये लगा की,
गिर ना जाऊं कहीं,
ख़ुद के इस प्रतिबिम्ब से,
मिल ना जाऊं कहीं,
ख़ुद को ख़ुद से अलग रखना,
हम सभी जानते हैं,
और फिर भी बिना प्रतिबिम्ब के,
स्वयं को पूरा मानते हैं....
2 comments:
too good, cant find a deserving comment for this one.........u left Both of Us SPEECHLESS :)
meri kya aukaad tumhe good kehne ka...
par kah sakta hoon ki padh kar achcha laga.
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