Saturday, February 28, 2009

अनजान शहर


अनजान शहर और दूर एक मंज़िल,
जाना पहचाना सा रास्ता और सीने मैं एक दिल,
कभी दिल के बहुत पास, तो कभी बहुत दूर,
मगर यह दिल जीतने पर मज़बूर,
प्यार करना ही नही आज लक्श्य मेरा,
जीत कर हार देना ही आज भाग्य मेरा,
पाकर खोना चाहता हूँ तुम्हे मैं,
जैसे मरकर फिर जीना चाहता हूँ मैं,
उस प्यार की तलाश में
उस अधूरेपन की तलाश में,
मैं बड़ा जा रहा था,
दिखी तुम उस समय की तरह,
जो महसूस करने से पहले बीत गया,
याद रही उस सपने की तरह,
जो सपना बन कर रह गया,
चाहत उस घाव की तरह,
जो भरना ही नही चाहती,
तुमने आकर मेरी तलाश ख़त्म की,
जैसे जीवन जीने की आस ख़त्म की...........

1 comment:

rashmi said...

Just wonderful!!!!!!!!!!!!!