Tuesday, January 3, 2017
बातें
काला रंग और काली रातें,
जेब में रखी ढेरो बातें,
निकली हैं कुछ कहने को,
रंगो से फिर लड़ने को,
सुन कर मुझे दोष ना देना,
हंस कर बस यूँ टाल ना देना,
माना मुझमे पंख नही है,
बंद होठों पे रुकी ये बातें,
आँखों में इज़हार हो गया,
प्यार मेरा स्वीकार हो गया,
महीनो की आँखों से बातें,
होठों से हसने की बातें,
पर जब से है बोलना सीखा,
जैसे सब बेकार हो गया,
गूंगी बातों के चक्कर मैं,
प्यार मेरा लाचार हो गया,
घुट घुट कर मारती हैं अब,
फँसी जहन में बहुत सी बातें,
उड़ने की कोशिश में गिरती,
अधमरी सी मेरी बातें,
कह के भी हैं टूटी फूटी,
बिन कहे दम तोड़ती बातें,
आग लगी जब मॅन के भीतर,
खुद को ही जलाती बातें,
रात नशे मैं बुदबुदाती,
सोच रहे सब कहाँ से आती,
कड़वी पर सुरीली बातें,
मस्तियों मैं नहाती बातें,
कुछ बातें सीधी हैं जैसे,
कुछ मेरी कविताओं जैसी,
पूछते हैं बहुत से लोग,
कैसे लिखते इतनी बातें,
मैं फिर भी चुप रहता हूँ,
एक टक सबको देखता रहता,
गर आता मुझे बोलना तो,
क्यूँ लिखता मैं इतनी बातें...
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