Friday, August 22, 2008

:-)

मेरे साथ रहकर तुम इतराती बहुत हो,
बीच बीच मैं कुछ सोचकर मुस्कुराती बहुत हो,
काटती हो अपने ही होठों को कुछ कहकर,
इंतज़ार मैं मेरे जवाब के तुम झल्लाती बहुत हो...


अक्सर फूलों को तोड़ने मैं काटें चुभ जाते हैं, उसे फूलों से खेलने का शौक थालहराने का, मचलने का और मेरे साथ रहकर इतराने का शौक थारोंती बहुत थी वो जैसे कभी हंस पाएगी फिर, पर मेरे पास आकर उसे मुस्कुराने का शौक थाखाना जैसे मेज़ पर रखा गुलदस्ता था उसके लिए, उसे मेरे हाथ से खाने का शौक थारोटी मुंह मैं रख कर बहुत देर सोचती थी वो, मुझे याद करने का उससे शौक थानींद मैं भी अगर हाथ छुट जाए तो जाग जाती थी वो और सपनो मैं ना जाने कहाँ घूम आती थी वो, उसे मेरे साथ घूमने का शौक था.बोलना भी भूल जाती थी वो, और सोचते सोचते अक्सर मेरे पास सो जाती थी वो, उसे शायद मेरे पास रहने का शौक था

1 comment:

rashmi said...

Bahut Bahut Bahut achhi hai