चाहता ना मैं किसी को,
मैं हूँ मानव अति अभिमानी,
विश्वास की द्रिड शिला मैं,
मैं दयावान अज्ञानी,
रोकता नही मैं ख़ुद को,
किसी भी अद्भुत सम्मोहन से,
जीतकर आया हूँ अब तक,
प्रत्येक मृगत्रिष्णा के भंवर से,
खोजता नही स्वयं को,
माया, निशा या ज्ञान मैं,
पथ पर बढता चला हूँ मैं,
इस भूलभुलैया विराम मैं,
कर्म मेरा धर्म है बस,
और मैं निर्मोही पालक,
द्वंद नही करते है मुझसे,
मारू, जल या भय पावक,
पुत्र हूँ ना मैं किसी का,
और ना ही प्रेम हूँ,
चाहता ना मैं किसी को,
अमानव मैं अचल देह हूँ।
Vikas
1 comment:
yo man way to go
tu shayar to nahin
par lagta hai yeh beti
jabse dekha tune usko
shayari aa gayi
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